Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi | एकादशी व्रत उद्यापन विधि 1 क्यों करना चाहिए एकादशी व्रत का पारण (उद्यापन) ?

Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi | एकादशी उद्यापन क्या है?

किसी भी व्रत का उद्यापन का मतलब है कि अब उस व्रत का समापन  हो रहा है | जैसे कोई 16 सोमवार के व्रत रखता है  उस को 16 सोमवार व्रत करने के बाद उसके समापन के लिए उद्यापन करना पड़ता है | 

उसी तरह एकादशी व्रत का भी उद्यापन होता है लेकिन ये बाकी व्रतों से अलग होता है |    एक  बार जब एकादशी व्रत शुरू करते हैं तो उस व्रत को किसी विशेष गिनती के बाद बंद नहीं करते बल्कि हमेशा चलाते रहते हैं इसलिए एकादशी व्रत का उद्यापन  उस एकादशी के अगले ही दिन द्वादशी को शुभ मुहर्त देख के करते हैं | 

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उद्यापन और पारण में अंतर |Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

जैसा कि ऊपर हमने आपको बताया कि जो व्रत किसी मनोकामना के लिए करे जाते हैं  उनको कुछ समय करने के पश्चात् उसको बंद कर दिया जाता है और समापन के समय  विधि विधान से की जाने वाली पूजा को ही हम लोग उद्यापन कहते हैं | 

एकादशी के व्रत के अगले दिन द्वादशी को विधि विधान से उस एकादशी   के समापन के लिए पूजा की जाती है और कुछ नियम से कर्म किये जाते हैं जिनको हम पारण भी कहते हैं कुछ जगह इसी को एकादशी का उद्यापन भी कहा जाता है | 

कुछ जगह पर एकादशी के साल भर के 24 व्रत रखने के बाद भी उद्यापन किया जाता है | 

एकादशी व्रत के दौरान, अन्न  नहीं खाया जाता है | और निर्जला एकादशी को अन्न और जल दोनों ही नहीं ग्रहण करते हैं | 

इसलिए उद्यापन और पारण वैसे तो हैं एक ही लेकिन अलग अलग जगह इन शब्दों का उपयोग होता है |Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

क्यों करें एकादशी व्रत का उद्यापन  |Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

प्राचीन महाभारत काल में इस एकादशी उद्यापन की विधि के बारे में पूछते हुए अर्जुन बोले, “हे कृपानिधि ! एकादशी व्रत का उद्यापन कैसा होना चाहिये और उसकी क्या विधि है? उसको आप कृपा करके मुझे उपदेश दें।” तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- “हे पांडवश्रेष्ठ ! उद्यापन के बिना, कष्ट से किये हुए व्रत भी निष्फल हैं। सो तुम्हें उसकी विधि बताता हूं। देवताओं के प्रबोध समय में ही एकादशी का उद्यापन करे । विशेष कर मार्गशीर्ष के महीने, माघ माह में या भीम तिथि (माघ शुक्ल एकादशी) के दिन उद्यापन करना चाहिये ।”

इसलिए एकादशी के व्रत का उद्यापन पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए और पूरे मन से अपनी क्षमता अनुसार इसके विधि विधान का पालन करना चाहिए | Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

क्या है एकादशी व्रत उद्यापन विधि (पारण विधि)|Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

 जो भक्त व्रत कर रहे हैं, उन्हें एकादशी का व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने का इंतज़ार करना चाहिए |  व्रत तोड़ने का सबसे अच्छा समय सुबह है. 

द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाती है, तो भी एकादशी के व्रत को सूर्योदय के बाद ही खोला जाता है. साथ ही अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय के बाद ख़तम हो  रही  है तो , द्वादशी तिथि के समापन से पहले ही व्रत का पारण कर लेना चाहिए |   द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करने से पुण्य पूरी तरह से  नहीं मिल पाता है |  

पूजा की तैयारी: उद्यापन के लिए पहला काम है पूजा सामग्री की तैयारी। इसमें जल, फल, फूल, धूप, दीप, और पूजा के लिए अन्य आवश्यक वस्तुओं का पहले से इंतजाम  करना  शामिल है।

पूजा स्थल सजाना: उद्यापन करने के लिए पूजा स्थान पर पूजा के लिए बैठते हैं और सब सामान को थाली इत्यादि में  रखते हैं | 

भगवान विष्णु की पूजा: गणपति बप्पा की पूजा से शुरू  कर के व्रत करने वाले भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उन्हें अपने व्रत को सफलता से समाप्त करने की कृपा करने  की प्रार्थना करते हैं।Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

मंत्रों का पाठ: भक्त विशेष मंत्रों का पाठ करते हैं और भगवान विष्णु को पूरी श्रद्धा से खुश करने का प्रयत्न करते हैं | 

प्रसाद वितरण: पूजा के बाद,भक्त तैयार किए गए प्रसाद को अपने परिवार और दोस्तों के साथ बाँटते हैं और पानी पी के, तुलसी पत्र अपने मुख में रख के अपना व्रत का समापन करते हैं | 

एकादशी उद्यापन का महत्व:|Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi

एकादशी उद्यापन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है।  इसके माध्यम से व्रती भगवान के साथ अपनी श्रदा को  मजबूत करते हैं ।

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