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Almora Temples | उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है और उत्तरखंड में आपको देवताओं का निवास मिल जायेगा चलिए आपको बताते हैं अल्मोड़ा उत्तराखंड के 11 ऐसे मंदिरों के बारे में जो लोगोंकी श्रद्धा का केंद्र हैं |
1. चितइ का गोलू देवता का मंदिर | Almora Temples
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चितइ का गोलू देवता मंदिर अल्मोड़ा से 12 km दूर स्थित है, यहाँ गोलू देवता जिन्हें यहाँ के लोग गोल्ज्यू कह कर पुकारते हैं वो निवास करते हैं।
यहां श्रदालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दर्शन करते हैं। मंदिर की विशेष परंपरा है कि भक्तजन यहाँ आकर गोलू देवता को अपनी परेशानी, इच्छा और मनोकामना पूर्ति के लिए एक पत्र लिख कर बांध देते हैं ।
और जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो वो घंटा चढ़ाकर गोलू देवता को धन्यवाद अर्पित करते हैं |
मंदिर में सबकी मनोकामना पूर्ण होती है इसलिए ये मंदिर दूर दूर से आये भक्त और श्रद्धालुओं से भरा रहता है |
गोलू देवता को न्याय का देवता भी माना जाता है,आसपास के लोग, जिनको भी दुनिया न्याय नहीं मिलता वो गोलू देवता के दरबार में जा के न्याय मांगते हैं |
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2. शिव ज्योतिर्लिंग जागेश्वर धाम | Almora Temples
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जागेश्वर धाम अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर अल्मोड़ा से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है।
माना जाता है कि जागेश्वर धाम पहला मंदिर था जहां शिव को लिंग के रूप में पूजा गया था। यह भगवान शिव की तपस्थली है। योगेश्वर भी इस मंदिर का नाम है। स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी इसका उल्लेख है।
जागेश्वर धाम में शिव, विष्णु, शक्ति और सूर्य देवों की पूजा की जाती है।
जागेश्वर धाम को वैदिक काल से ही भगवान शिव को समर्पित किया गया था। यह मंदिर लगभग 8वीं या 9वीं सदी ईसा पूर्व का है।
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3. कटारमल का सूर्य मंदिर | Almora Temples
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कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा से 17-18 किलोमीटर दूर अधेली सुनार नाम के गाँव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी वंश के राजा कटारमल ने 900-1000 साल पहले बनवाया था ।
मंदिर का निर्माण राजा कटारमल ने एक ही रात में करवाया था।
कटारमल सूर्य मंदिर की सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी मूर्ति बरगद की लकड़ी से बनाई गई है, जो अलग और अद्भुत है।
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4. प्राचीन नंदा देवी का मंदिर | Almora Temples
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अल्मोड़ा के बाजार में स्थित नंदा देवी का प्राचीन मंदिर है।
1670 में नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को कुमाऊं के चंद वंशीय शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणगढ़ के किले से अल्मोड़ा लाये थे
उन्होंने मल्ला महल (पुराने कलक्ट्रेट) में इस प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया और इसे अपनी कुलदेवी के रूप में पूजना शुरू किया।
हर साल सितम्बर के महीने में अल्मोड़ा में नंदा देवी का मेला लगता है, इस मेले में माँ नंदा देवी की एक मूर्ति बनायीं जाती है और पुरे शहर में मूर्ति का भ्रमण होता है ।
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5. ग़ैराड का कलबिष्ट डाना गोलू देवता का मंदिर | Almora Temples
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कुमाऊँ क्षेत्र में गोलू देवता को इष्ट देव के रूप में पूजा जाता है, ग़ैराड गोलू देवता के मंदिर में भी लोग अपनी मन्नत मांगने जाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं।
मंदिर में बलि प्रथा भी होती है।
मंदिर जंगल से घिरे क्षेत्र में है और आवागमन के सीमित साधन हैं
गोलू देवता के मंदिर में लोग न्याय की आस में भी जाते हैं | गोलू देवता अपने भक्तों को तुरंत न्याय देते हैं। मंदिर के चारों ओर हजारों घंटियाँ लटकी हुई हैं।
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6. कसार देवी में माता का प्राचीन मंदिर | Almora Temples
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उत्तराखंड के अल्मोडा जिले से मात्र छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित माँ कसार देवी मंदिर की महिमा अपरंपार है । मंदिर में दूर दूर से श्रद्धाळू माँ के दर्शन करने आते हैं ।
ऐसा बताया जाता है कि कसार देवी मंदिर दूसरी शताब्दी में बना था |
इस मंदिर में स्वामी विवेकानंद ने 1890 में, काफी समय साधना में बिताया था इसलिए इस मंदिर में लोग स्वामी विवेकानंद जी की आध्यात्मिक ऊर्जा का भी अनुभव करने आते हैं |
इस मंदिर में काफी विदेशी सैलानी भी आते हैं और इस मंदिर के आसपास 4-5 किलोमीटर के इलाके में काफी विदेशी लोग भी घर बनाकर रहते हैं |
मंदिर में हर साल कार्तिक के महीने में पूर्णिमा के दिन मेला लगता है जो कि आसपास के क्षेत्रों में काफी प्रसिद्ध है और उस दिन हजारों की संख्या में लोग इस मेले में आकर माँ कसार देवी के दर्शन करते हैं |
कसार देवी मंदिर अपनी चुम्बकीय शक्तियों के लिए भी बहुत फेमस हैं, अमेरिकी संस्था नासा ने भी यहाँ एक पॉइंट जीपीएस 8 बताया है जिसे मंदिर मंदिर के मुख्य द्वार के बायीं ओर देखा जा सकता है |
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7. अल्मोड़ा कचहरी परिसर में रामशिला मंदिर | Almora Temples
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रामशिला मंदिर अल्मोड़ा पुरानी कलक्ट्रेट में स्थित है और अल्मोड़ा के कचहरी बाजार से मात्र 2 मिनट की दुरी पर स्थित है |
रामशिला मंदिर के बारे में माना जाता है कि ये मंदिर 435 साल पुराना मंदिर है और इसका निर्माण 1588 में राजा रुद्रचंद्र ने करवाया था, मल्ला महल में ये मंदिर बनवाया गया था |
राम नवमी के दिन इस मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ जुटती है और सुबह 4 बजे से ही पूजा अर्चना शुरू हो जाती है |
अभी इस मंदिर की सही तरीके से देख-रेख ने होने के कारण इसकी हालत थोड़ा जीर्ण शीर्ण हो गयी है और एक साइड को ये मंदिर थोड़ा झुक गया है |
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8. मां स्याही देवी का मंदिर | Almora Temples
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माँ स्याही देवी मंदिर अल्मोड़ा से 37 किलोमीटर की दुरी पर ऊँचे पहाड़ पर स्थित है, मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में हुआ था |
मंदिर में भक्त लोग अपनी मनोकामना मांगते हैं और मनोकामना पूरी होने पर भक्तगण घंटी बांधकर या भंडारा कर के माँ को धन्यवाद कहते हैं |
माँ स्याही देवी मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं ने करवाया था और ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को एक रात में ही बनाया गया था |
माता स्याही देवी मंदिर में अगर श्रद्धा से जाते है तो ऐसा माना जाता है कि माँ के 3 रूप देखने को मिलते हैं | सुबह के समय माँ सुनहरे रंग के रूप में दिखाई देती है और दिन के समय माँ का काली रूप नजर आता है और शाम को माँ सांवले रंग में नजर आती हैं |
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9. अल्मोड़ा के अष्ट भैरव मंदिर | Almora Temples
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अल्मोड़ा में अष्ट भैरव विराजमान हैं, यहाँ के लोक देवता भोलेनाथ जी को शांत करने के लिए राजा ज्ञान चाँद के शासनकाल में भैरव के आठ रूपों को यहाँ स्थापित किया है जो आज भी अल्मोड़ा नगर की रक्षा करते हैं –
काल भैरव
बटुक भैरव
शः भैरव
गढ़ी भैरव
आनंद भैरव
गौर भैरव
बाल भैरव
खुटकुनिया भैरव
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10. पाताल देवी मंदिर | Almora Temples
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अल्मोड़ा में पाताल देवी का मंदिर 17वी शताब्दी में चाँद वंश के राजाओं ने बनवाया था |
मंदिर में बहुत सारी प्राचीन मूर्तियां विराजमान है एवं श्रदालुओं की मान्यता है कि इस मंदिर में आकर सारी मनोकामना पूरी हो जाती हैं |
11. बेतालेश्वर मंदिर ॐ शिव मंदिर | Almora Temples
अल्मोड़ा में शहर से करीब 3 किलोमीटर दूर शिव शंकर भगवान् का मंदिर बेतालेश्वर स्थित है |
बेतालेश्वर मंदिर जाने के लिए करीब 2 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है और अगर किसी को पैदल यात्रा नहीं करनी है तो वो बेस हॉस्पिटल अल्मोड़ा से विकास भवन जाने वाले सड़क मार्ग से करीब 10 किलोमीटर की यात्रा कर के जा सकता है |
बेतालेश्वर मंदिर बहुत ही पुराना मंदिर है और इसका इतिहास सैकड़ों साल पुराना बताया जाता है लेकिन सही सही ये नहीं पता कि बेतालेश्वर मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई थी |
सन 1945 से 40 साल तक बाबा दानपुरी यहाँ पर रहे, जो बाबा सम्पूर्णानन्द जी के भक्त थे और 1984 में बाबा जी ने देह त्याग कर दिया |
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